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जल की गुणवत्ता भी बुरी तरह से प्रभावित होने से ज़ायक़ा ही बदल गया
देवीसिंह राठौड़ तिलोड़ा , जालोर।
मनुष्य हो अथवा मवेशी, जीव-जंतु हो अथवा वनस्पति सभी के जीवन का मूलाधार जल है । इसीलिए पुरानी सभ्यताएं भी नदियों के किनारे आबाद थीं । हड़प्पा और मोहनजोदड़ो हो, चाहे सिंधु घाटी सभ्यता । नदियां जीवन रेखा हुआ करती हैं । जीवन के लिए वरदान । यही वरदान यदि अभिशाप बन जाए, तो… जालोर जिले के व्यापक क्षेत्रफल के लिए जवाई (सुकड़ी) नदी अभिशाप बनी हुई है और इस अभिशाप का कारण और कारक है जवाई बांध । पवन, पानी और प्रकाश क़ुदरती, किसी की बपौती नहीं, इन्हें रोक नहीं सकते हैं। इन पर सभी का समान अधिकार । आप भले ही गगनचुम्बी अट्टालिका बनवा लें । पैसा आपका है और अपनी ज़मीन पर आलीशान इमारत बनवाने का आप अधिकार रखते हैं ।
लेकिन, अपने पड़ोस में झोंपड़े में रहने वाले परिवार के हिस्से का पवन और प्रकाश नहीं रोक सकते । उसके लिए आपको अपने भवन में समुचित व्यवस्था के लिए रोशनदान बनवाने ही बनवाने हैं । अपने देश से गुजऱ रही नदी अथवा नदियों का पानी पड़ोसी शत्रु देश के हिस्से का भी नहीं रोक सकते । विडम्बना देखिए, यहां निज देश में, अपने ही सूबे में एक जिले के हिस्से का पानी रोका जा रहा है और जिले के जिम्मेदार, जनप्रतिनिधि, बुद्धिजीवी मौन।
यह लोकतंत्र है साहब, राजतंत्र नहीं…
पाली जिले में सुमेरपुर कस्बे के पास जवाई बांध का निर्माण रियासतकाल में मारवाड़ (जोधपुर) रियासत के तत्कालीन नरेश महाराजा उम्मेदसिंह राठौड़ ने करवाया था । क्यों? जनहितार्थ… कदापि नहीं, राजघराने के राजस्व की वृद्धि के लिए । उस समय देश पर फिरंगियों (अंग्रेज़ों) का शासन था । फिरंंगी हुक़ूमत ने रेल लाइन बिछाने के लिए तत्कालीन महाराजा स्वर्गीय उम्मेदसिंह राठौड़ से श्रमिकों के लिए पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित करने की शर्त रखी थी । रेलवे के माध्यम से तिज़ारत (व्यापार) से अंग्रेज़ी हुक़ूमत के साथ-साथ मारवाड़ रियासत की राजस्व आय में आशातीत वृद्धि के मद्देनजऱ जोधपुर रियासत के तत्कालीन नरेश महाराजा उम्मेदसिंह राठौड़ ने यह शर्त सहर्ष स्वीकार कर ली । सुमेरपुर कस्बे के पास जवाई बांध का निर्माण करवाकर उदयपुर जिले के मावली क्षेत्र एवं आड़ावल (अरावली पर्वत श्रृंखला) का बरसाती पानी जवाई बांध से रोक दिया गया ।
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जालोर जिले के भाग्य का सितारा यहीं से अस्त हो गया । वो राजतंत्र की बात थी साहब, मत भूलिए अब लोकतंत्र है और लोकतंत्र में किसी का भी हक़ नहीं मार सकते, यह तो व्यापक क्षेत्रफल के लाखों लोगों के अधिकारों की बात है । जवाई बांध के निर्माण के बाद जवाई (सुकड़ी) नदी में बरसाती पानी का प्राकृतिक प्रवाह अवरुद्ध कर दिया गया । फलत: पुनर्भरण के अभाव में जालोर जिले के व्यापक क्षेत्रफल के कृषि कुओं का भू-जल तेज़ी से रसातल की ओर कूच करने लगा । कुएं रीतने लगे । खेत-खलिहानों सूने होने लगे । मरता क्या न करता । तू डाल-डाल, मैं पात-पात की तर्ज़ पर किसान भूमिगत जल का पीछा करने लगे । पहले कुआं सुधार, कुओं की गहराई एवं अब नलकूप (बोरवेल) मद में कृषि की लागत में सैकड़ों गुणा बढ़ोतरी होने लगी । कमाई कर और कुएं में डाल वाली कहावत शत प्रतिशत सटीक चरितार्थ होने लगी । जल की गुणवत्ता भी बुरी तरह से प्रभावित होने लगी । जल का ज़ायक़ा ही बदल गया। क्षारत्व एवं तेलीय बन गया । उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩे लगा ।
किसानों की कमर ही टूट गई । वे बेरोजग़़ारों की पंक्ति में आन खड़े हो गए । भू-जल में फ्लोराइड की मात्रा बढऩे से लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩे लगा। श्वांस, गंठिया, अपच, अनिद्रा, मलनिस्तारणा जैसी फ्लोराइडजनित व्याधियां घेरने लगीं । दांतों की रंगत पीली पडऩे लगीं, दिमाग़ी संतुलन भी बिगडऩे लगा। जोड़ों के दर्द से हालात बिगडऩे लगे । स्वास्थ्य मद में अनावश्यक अतिरिक्त व्यय बढ़ गया । जवाई बांध जालोर जिले के व्यापक क्षेत्रफल के लाखों लोगों एवं मवेशियों के लिए दोहरी मार का सबब बना हुआ है । जवाई बांध से नदी का प्राकृतिक बहाव रोक दिए जाने से मनुष्य एवं मवेशी जल के बिना मरते हैं अथवा मरने जैसी दुश्वारियां झेलते हैं और जवाई बांध का पानी यकायक छोड़े जाने के समय जल से मरते हैं। पाली जिले में सुमेरपुर परिक्षेत्र, सिरोही जिले के झोरा-मगरा क्षेत्र, आबू पर्वत की उत्तरी पठार क्षेत्र में हुई व्यापक बारिश से जवाई (सुकड़ी) नदी पहले ही से पूरे वेग के साथ बहती है और यकायक छलकने को आतुर जवाई बांध के फ़ाटक खोल दिए जाते हैं । जवाई नदी की अथाह जलराशि विकराल रूप धारण कर लेती है । पग़लाए हाथी की मानिन्द चीखते-चिंघाड़ते हुए अपने तटबंध तोड़कर आबादी क्षेत्र का रुख करती है । बाढ़ विभीषिका के हालात दरपेश । असंख्य मनुष्य और मवेशी बाढ़ के पानी में अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं । चहुंओर हाहाकार मच जाता है । बेशकीमती कृषि भूमि का कटाव हो जाता है ।
पेयजल की नहीं, सिंचाई के पानी की चिंता कीजिए
व्यवहारिक रूप से नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को अवरुद्ध कर ही नहीं सकते हैं । रियासतकाल के समय मान लिया जाए कि मजबूरी थी, लेकिन अब लोकतंत्र में कौन-सी विवशता है? (कु) तर्क यह दिया जा रहा है कि जवाई बांध में पेयजल के लिए पानी आरक्षित रखा जाता है । किस पेयजल संकट का हौव्वा खड़ा किया जा रहा है? उस पेयजल संकट का, जो वास्तव में है ही नहीं। जोधपुर शहर के बाशिंदों के लिए पेयजल आपूर्ति हिमालय के पानी से । उल्टे यह जी का जंजाल बन गया है । व्यवसायिक एवं आवासीय भवनों के भू-तल तक भू-जल स्तर ऊंचा आ गया है । भवनों की नींवें हिल रही हैं । भवन भरभरा कर गिरने की कगार पर । पाली शहर के बाशिंदों के पेयजल के लिए लखोटिया तालाब जलस्रोत है ही। न भी हो, तो यह सरकार एवं सरकार के जलसंसाधन, अभियांत्रिकी विभाग का सिर दर्द। सीमित क्षेत्र एवं सीमित आबादी की सुविधा के लिए व्यापक क्षेत्रफल एवं बड़ी आबादी के लिए असुविधा उत्पन्न करना न्यायोचित है क्या? पेयजल का काल्पनिक हौव्वा खड़ा करने एवं इस मुग़ालते में आने से पहले इस पहलू पर ग़ौर कीजिएगा कि समस्या पेयजल की है अथवा सिंचाई के पानी की? मान लीजिए आपके परिवार में आठ सदस्य हैं। प्रतिदिन उन्हें पीने के लिए कितने लीटर पानी चाहिए होगा? अब फजऱ़् कीजिए कि आपके पास साठ बीघा कृषि भूमि है। फ़सल सिंचाई के लिए प्रतिदिन कितना पानी चाहिए होगा? संकट पेयजल का है अथवा सिंचाई के पानी का? पेयजल की चिंता छोडिए और सिंचाई के पानी की फिक्र कीजिए । चलिए, पेयजल आपूर्ति के लिए जवाई बांध में पानी के आरक्षित रखने को सही मान लिया जाए, तब भी इस तथ्य को नजऱ अंदाज़ कैसे कर सकते हैं कि 38 फ़ीट पानी पर जालोर जिले की हिस्सेदारी बनती है ।
इसे आसान तरीक़े से यूं समझिए। जब जवाई बांध अपनी पूर्ण भराव क्षमता के साथ भर जाता है। पेयजल एवं सीमित क्षेत्र में नहरों के माध्यम से कृषि सिंचाई (जालोर जिले की आहोर तहसील के कुछेक गांवों समेत) सिंचाई के बाद भी 38 फ़ीट पानी बचता है। वो अड़तीस फ़ीट पानी जालोर जिले के हिस्से का है। जवाई बांध की कुल भराव क्षमता का कऱीब आधा। चलिए, जब तक जवाई बांध की कुल भराव क्षमता का कऱीब आधा पानी जवाई बांध में आता है (कऱीब 38 फ़ीट) तब तक कोई बात नहीं। लेकिन, अड़तीस फ़ीट के बाद फ़ाटक खुले रखे जाएं। जवाई बांध से पानी का निरंतर प्रवाह जवाई (सुकड़ी) नदी में होते रहने से भू-जल का पुनर्भरण होता रहेगा। किसानों के कृषि कुओं का भू-जल स्तर भी ऊंचा आ जाएगा। खेत-खलिहान गुलज़ार हो जाएंगे। फ्लोराइड युक्त बेस्वाद पानी एवं फ्लोराइड जनित व्याधियों से भी छुटकारा मिल जाएगा। यकायक फाटक खोले जाने की नौबत भी नहीं आएगी। मनुष्य एवं मवेशी बाढ़ के पानी में अपनी जान से हाथ भी नहीं धोएंगे और बेशक़ीमती कृषि भूमि का कटाव भी नहीं होगा। यदि ऐसा नहीं किया जा सकता है, तो अतिवृष्टि के समय जवाई बांध से एक बूंद भी पानी जवाई (सुकड़ी) नदी में नहीं छोड़ा जाना चाहिए । जालोर जिले के बाशिंदों और मवेशियों को दोहरी मार देने का अधिकार किसने दे रखा है? यदि भारतीय संविधान में लिखा हुआ हो, तो किस अनुच्छेद में?
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